Saturday, 14 January 2017

तेरी गलियां लिखने वाले गीतकार मनोज मुंतशिर का एक छोटे से शहर से सपनो और कोशिशो के दम पर मुंबई तक का सफ़र

तेरी गलियां   ,तेरे संग यारा ,वजह तुम हो,जैसे ना जाने कितने सुपरहिट गाने लिखने के साथ ही बाहुबली जैसी बड़ी फिल्म के  हिंदी के सवांद लिखने का श्रेय जिनको जाता है वो है मनोज मुंतशिर  
ये इनकी ही कलम का जादू ही है की फिल्म पूरी देखने के बाद भी ये नही लगता की हमने कोई दक्षिण भारत की  फिल्म देखीं है, जिसे हिंदी मे डब किया गया है।
आज उनका नाम सब जानते है ,उन्हें कई सम्मान भी मिले है ,जिसके वो हक़दार भी है।
लेकिन आज के  मनोज  मुंतशिर  का सफर जो मनोज शुक्ला से शुरु हो के आज  भी निरंतर जारी है ।
                

ये सफर ये रास्ता जिसपे वो चल रहे है ये आसान नही था ,मनोज इसे संघर्ष का नाम नही देते ,वो कहते है ये जरूरी है कि  अगर आपको मुंबई आना है, अपना हुनर दिखना है ।
तो आपको आना होगा आप ये बहाने बिल्कुल  नही कर सकते की मैं  एक छोटे से शहर  से हूँ , मुंबई मे  किसी को जानता  भी नही हूँ  क्योंकि  अगर ये बहाने मनोज शुक्ला ने किये होते तो आज हमे मनोज मुंतशिर नहीं  मिलते ,वो जो कहते है उसे अगर मैं  दो लाइन मे लिखूँ तो वो होगा कि 
 चमकना है अगर तो जलना तो होगा, आगे बढना है अगर तो पिघलना तो होगा
घर से ही नही मिलेगी पहचान अगर पानी है तो सफ़र पे निकलना तो होगा |

उतर प्रदेश जिला अमेठी  के छोटे से गाँव गौरीगंज मे 27 फरवरी 1976 को   जन्मे मनोज शुक्ला को आज पूरी दुनिया मनोज मुंतशिर के नाम से जानती है .
मनोज जब छोटे थे तब से ही उन्हें लिखना पसंद था |वो अपने माता –पिता की अकेली संतान थे| किसी  चीज़ की कमी नही थी,
 लेकिन वो जिस प्रदेश से हैं , वहाँ प्यार का एक अलग  रंग आज भी है
और वो तो खतो के जमाने  मे जवान हुए ,वो बताते है कि 
जब वो किशोर अवस्था मे पहुँचे तो उन्हें भी प्यार हुआ, जैसे सबको  होता है ,
पर उस वक़्त आज की तरह फेसबुक व्हट्सएप्प नही हुआ करते थे |
तब  प्यार ऐसे होता था, कि आप कहीं   जा रहे है |
सामने एक खिड़की खुली जिसमें  से किसी ने देखा और उसी पल वो आपको पसंद आ गयी, आपकी दिलरुबा और  आपके मित्रो की भाभी बन गयी, लेकिन उसे ये पता नही कि  उसे कोई चाहने लगा है कोई भाभी समझने लगा है |

मनोज खुद को किस्मत वाला समझते है कि उनकी बात खिड़की से आगे बढ़ी और  ख़त और तस्वीरों तक पहुची |
पर  प्यार है तो ऐतराज़ तो होगा, सो लड़की के  पिता जी को हो गया 
इसलिए प्रेमिका ने  मनोज से कहा की आप मेरे ख़त,तस्वीर वापस कर दो |
 तब मनोज ने  सोचा कि  जिन लफ़्ज़ों  को  पढके वो  कहीं  भी अपना  नाम कर सकते थे,वो लफ्ज़  वो कला उन्होंने उस लड़की पर  लुटा दी, और बदले मे उन्हें  क्या मिला ? दूरियां ,
तब  उन्होंने ये नज्म कहीं
                  की आँखों की चमक जीने की लहक सांसो की रवानी वापस दे
                   मै तेरे ख़त लौटा दूंगा तु मेरी जवानी वापस दे,

जब फुलो वाली रुत आई  और जश्न मनाया दुनिया ने
जब टूट के बरसी मस्त घटा और झूम के नाचे दीवाने
फेर के आँखे हर शय से मैं  तेरा दर्द संजोता रहा
चुप-चाप अँधेरे कमरे में  बिस्तर पे पड़ा मैं  रोता रहा
तेरी याद में  जिनको ख़ाक़ किया वो शाँमे सुहानी  वापस दे
मैं  तेरे ख़त लौटा दूंगा तु मेरी जवानी वापस दे,

                   वो दिन भी कैसे दिन थे जब पलकों पे ख़्वाब पिघलते ते
                   जब शाम ढले सूरज डूबे दिल के अंगारे जलते थे
                    वो धूप  छाँव सब खाक हुई यादों  के चेहरे पीले हैं 
                   कल ख्वाबो की फसले थी जहाँ अब रेत के बंजर टीले हैं 
                     आँखों के दरिया सुख गये ला इनका पानी वापस दे
                     मैं  तेरे ख़त लौटा दूंगा तु मेरी जवानी वापस दे,

दिल धड़के पर आवाज न हो ये शर्त मुझे मंजूर नहीं 
तेरे गम से बगावत कर न संकू मैं   इतना भी मजबूर नहीं 
जब चाहा  तब प्यार किया जब चाहा तब रूठ गये
बस एक अंगूठी लौटा दी और सारे  रिश्ते टूट गये
ला मुझको मेरे अरमानो की हर एक निशानी वापस दे
 मैं  तेरे ख़त लौटा दूंगा तु मेरी जवानी वापस दे |



इस  नज्म मे  दर्द है , गुस्सा  है लेकिन तेरे गम से बगावत कर न सकु ये दिखता है कि  जिन्दगी है दर्द होगा और अगर आगे बढना है तो दर्द से बगावत करनी पड़ेगी ,और ये कहना पड़ेगा खुद से ,
जिसे साथ चलना है  वो आये वरना अकेले ही काफी हूँ  मैं  मेरे सपनो के लिए |
पापा के लाख समझाने  के बाद भी मनोज ने जब जिद्द  नही छोड़ी तो पापा ने कहा कि पढाई पूरी करो फिर जहाँ  मर्ज़ी हो जाना ,
पढाई पूरी हुई  700 रुपये ले के मनोज मुंबई के लिए रवाना हो गये ,वो कहते है कि  उस वक़्त मैं  मुंबई मे किसी को नही जानता था |
जब ट्रेन ली  मुंबई के लिए तब 700 रुपये  के अलावा उनके पास चन्द किताबे  साहिर साहब की लिखी हुई  थी  ,दादर स्टेशन पर  उतरने के बाद कुछ दिन या महीने नही ,
उन्होंने कई साल मुंबई की सडक़ो पर गुजारे । 
 आप समझ सकते है कि  कैसे गुजरे होंगे वो साल ,  लेकिन कहते है ना सपने हो तो सब हो जाता है, सब गुजर जाता है  और जब आप कोशिश  करते हो तो वो ऊपरवाला भी साथ देता है। 
मनोज ऊपरवाले का शुक्रिया करते हैं  कि  एक दिन भी भूखे नहीं  सोये लेकिन मायूसी होती थी जो आम है, पर  जब-जब मायूसी छाई उन्होंने कहा कि 
           मैंने लहू  के कतरे मिट्टी मे  बोये है
          खुशबू जहाँ  भी है वो मेरी कर्ज़दार है
          ऐ वक़्त होगा एक दिन तेरा मेरा हिसाब
         मेरी जीत न जाने कब से तुझ पे उधार है
वो दिन आया जब हिसाब हुआ, एक साहब उन्हें  मिले जो  अमिताभ सर के शो "कौन बनेगा करोड़पति" के लिए लेखक की  तलाश कर रहे थे ,उन्होंने जब उनके सजाये शब्दों को देखा तो  कहा की गजब लिखते हो। 
अगले दिन मनोज सदी के महानायक के सामने थे। वो बताते है की जब वो अमिताभ सर  से मिलने गये तो जो कपड़े और जूते उन्होंने पहने थे ,वो बहुत ही पुराने थे |
                

उस मुलाकात मे उन्हें वो शो मिल गया तब हालत सुधरे ही नही बेहतर हो गये |
लेकिन फिल्मो मैं गाने लिखने थे,वो सपना पूरा हुआ जब गाने लिखने के लिए एक फिल्म  मिली जिसकी उन्हें बहुत ख़ुशी हुई। 
 लेकिन  अपनी बीवी और दोस्त के साथ जब वो सिनेमा हॉल गए तो हॉल वालो ने कहा कि  तीन लोगो के लिए फिल्म नही चलेगी । क्योकि वो कोई छोटी फिल्म थी जिसे देखने कोई भी नही आया था , इन तीन लोगो के सिवा । 
वो बड़े मन से आये थे की अपने लिखे गानो को बड़े  पर्दे पर  देखेंगे  
 लेकिन ज्यादा लोग न होने के कारण सिनेमा हॉल में फिल्म नही चली ,इस बात का उन्हें इतना दर्द हुआ कि आँखों से आँसू छलक पड़े[
 पर एक वक़्त वो था और एक आज है जब हर हफ्ते उनकी कोई न कोई फिल्म आ रही है |
(ये कोशिश थी मेरी की  मैंने जो भी देखा या पढ़ा मनोज मुंतशिर के बारे में उन सब बातों को एक जगह समेट सकु ,पर इन्ही के बारे मे इसलिए लिखा  क्योकि इनके सफर से ये पता चलता है कि ,
जो सपने है उन्हें सच करने के लिए थोडा बहुत नही सारा वक़्त देना पड़़ता है , मतलब हर पल उन्हें दिमाग मे  रखना पड़ता है|

   और उन लोगो के लिए खास करके लिखा  जो  मुंबई जाना चाहते है पर ना जाने किसके बुलावे का इंतजार कर रहे है .....................................................|
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